निर्मितवादी अधिगम सिद्धांत क्या है?

निर्मितवादी अधिगम सिद्धांत

निर्मितवादी अधिगम सिद्धांत को संरचनावादी अधिगम भी कहा जाता है। निर्मितवादी अधिगम सिद्धांत, संज्ञानात्मक  मनोविज्ञान पर आधारित है। निर्मितवादी अधिगम सिद्धांत B.Ed, M.Ed, CTET, HTET, UPTET तथा अन्य परीक्षाओं के लिए आवश्यक है।

इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आखिर यह सिद्धांत है क्या। इसके अतिरिक्त यह भी जानेंगे कि यह सिद्धांत किस प्रकार व्यक्ति के संज्ञान पर प्रभाव डालता है।

निर्मितवादी अधिगम सिद्धांत

यह सिद्धांत संज्ञानात्मक मनोविज्ञान पर आधारित है। जैसा कि हम जानते हैं कि संज्ञान से ज्ञान की प्राप्ति होती है। संज्ञान में चिंतन, समझ, समस्या समाधान तथा अन्य मानसिक प्रतिक्रियाएं आती हैं जिसके माध्यम से हमारा दुनियावी ज्ञान विकसित होता है। यह हमें इस योग्य बनता है कि हम वातावरण के साथ विशिष्ट ढंग से रह सकते हैं और दुनिया को भली भाँती जान सकते हैं।

संज्ञान (Cognition) से तात्पर्य मन की अंदरूनी प्रक्रियाओं से है, तथा इस शब्द का अर्थ है ‘जानना’ या ‘समझना’। इसमें सभी प्रकार की मानसिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं जैसे- ध्यान लगाना, कुछ याद करना, सांकेत देना या प्राप्त करना, योजना बनाना, समस्या हल करना, आदि।

संज्ञानात्मक विकास हमारे विकास का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। यह एक इस प्रकार की बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें विचारों के माध्यम से ज्ञान की प्राप्त होती है। संज्ञानात्मक विकास शब्द का प्रयोग मानसिक विकास के व्यापक अर्थो में किया जाता है। अत: यह कहा जा सकता है कि संज्ञान में मानव की विभिन्न मानसिक गतिविधियों का समन्वय होता है।

संज्ञानात्मक मनोविज्ञानक का जनक जीन पियाजे को माना जाता है। कुछ अन्य संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक मानव मन को कंप्यूटर की तरह एक सूचना प्रकरण तंत्र के रूप में देखते हैं। इस विचारधारा के अनुसार मन एक कंप्यूटर की तरह होता है, जो सूचना को प्राप्त करता है, प्रकरण करता है, रूपांतरण करता है, संचित करता है, तथा आवश्यकता पड़ने पर उसकी पुनः प्राप्ति करता है।

आधुनिक संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक मनुष्य को उनके सामजिक एवं भौतिक वातावरण के अन्वेषणों के द्वारा अपने मन की सक्रिय रचना करने के रूप में देखते हैं। इसी विचारधारा को ही निर्मितवाद कहते हैं।

निर्मितवाद विचारधारा के अनुसार ज्ञान व्यक्ति का आंतरिक पक्ष होता है। यही कारण है कि व्यक्ति के बाहरी शारीरिक गठन या सौन्दर्य को देखकर यह पता नहीं लगाया जा सकता कि व्यक्ति कितना ज्ञानी है। अर्थात ज्ञान आंतरिक पक्ष है और व्यक्ति उसको अर्जित करता है, ग्रां अर्जन के बाद वह ज्ञान को संचित करता है, और उसमे दिन प्रतिदिन विस्तार भी करता रहता है।

निर्मितिवाद विचारधारा

यह विचारधारा, छात्र केन्द्रित शिक्षा के पक्ष में होती है। इसके अंतर्गत छात्र के पूर्व अनुभव अर्थात पहले से संचित ज्ञान को महत्व दिया जाता है । संरचनावादी अधिगम सिद्धांत का मानना है कि बालक के द्वारा पूर्व प्राप्त ज्ञान तथा नये ज्ञान दोनों में अंतः क्रिया होती रहती है और इसी अंतः क्रिया के फलस्वरूप छात्र ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

निर्मितिवाद में बालक स्वयं के द्वारा कार्य कर के सीखता है और इस प्रकार से प्राप्त ज्ञान उसके मस्तिष्क में बैठ जाता है। निर्मितिवाद अधिगम सिद्धांत के अंतर्गत बालक को सक्रिय अधिगमकर्ता माना जाता है।

इस सिद्धांत के अंतर्गत एक शिक्षक की भूमिका मार्गदर्शक की होती है। शिक्षक बालक को काम करने का तरीका तथा उनके उदेश्यों को बताता है और उनको कार्य करने का अवसर भी प्रदान करता है जिससे बालक समय से कार्य करने के लिए प्रेरित हो उठता है।

मूल रूप से निर्मितिवाद अवलोकन और वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक सिद्धांत है जिसमें यह पता लगाया जाता है कि व्यक्ति या बालक किस प्रकार सीखता है। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति अपनी समझ और विश्व सम्बन्धी ज्ञान का निर्माण, वस्तुओं के अनुभवों और उनकी अभिव्यक्ति के माध्यम से करते हैं।


जब हम किसी नई वास्तु को देखते हैं तो हमें अपने पूर्व विचारों और अनुभवों के साथ इसका मेल करना पड़ता है। हम चाहें तो प्राप्त की नई सूचना को अस्वीकार कर दें या जिस पर हम विशवास करते हों उसमें परिवर्तन कर दें। स्थिति कोई भी हो हम अपने ज्ञान के स्वयं ही रचयिता होते हैं। इसे करने के लिए हमें प्रश्न पूछने चाहिए, खोज करनी चाहिए, तथा जो कुछ हम जानते हैं उसका मूल्यांकन अवश्य करना चाहिए।

कक्षा की परिस्थिति में निर्मितवाद से अभिप्राय विद्यार्थियों को सक्रिय तकनीकों, प्रयोगों, वास्तविक संसार, समस्या समाधान आदि के हेतु प्रोत्साहित करना है ताकि अधिक ज्ञान का सृजन किया जा सके।

निर्मितवाद की अवधारणाएं


इस सिद्धांत के अनुसार अधिगमकर्ता अपने ज्ञान का निर्माण अपने वातावरण के अनुसार अंतर्क्रिया करके स्वयं ही करता है। निर्मितिवाद की अवधारणाएं निम्न प्रकार से हैं-

  • ज्ञान का निर्माण अधिगम करता के द्वारा भौतिक रूप से किया जाता है।
  • ज्ञान का निर्माण अधिगमकर्ता संकेतों के रूप में करते हैं जो स्वयं क्रिया का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • निर्मितिवाद में ज्ञान का निर्माण सामजिक रूप से किया जाता है, इसमें अपना अर्थ दूसरों को सम्प्रेषित करते हैं।

निर्मितिवाद के सन्दर्भ में अधिगम डिज़ाइन (Learning Design) पर अधिक बल दिया जाता है। पारम्परिक पाठय योजना में तो इस बात पर ध्यान दिया जाता रहा है कि अध्यापक क्या कुछ करेगा। लेकिन निर्मितिवाद के अंतर्गत विद्यार्थियों के लिए अधिगम अनुभवों का डिज़ाइन तैयार करने के लिए अध्यापक इस बात पर बल देता है कि विद्यार्थी क्या करेंगे। अध्यापक के व्यवहारों को नियोजित करने के बजाए उन बातों को संगठित किया जाए जिन्हें अधिगमकर्ता में संपन्न करना होता है।

पिछले दशक में निर्मितावाद अधिगम शिक्षण में प्रमुख उपागम बनकर उभरा है। अतः यह पूर्णतया व्यवहारवाद पर आधारित शिक्षा से संज्ञानात्मक सिद्धांत पर आधारित शिक्षा की ओर शिफ्ट होने का प्रतिनिधित्व करता है।

निर्मितिवादी अधिगम डिज़ाइन के तत्व

निर्मितिवादी अधिगम डिज़ाइन के ६ आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं-

  • परिस्थिति
  • ग्रुपिंग
  • सेतु या ब्रिज
  • प्रश्न
  • प्रदर्शन
  • प्रतिबिम्ब

1. परिस्थिति

अध्यापक विद्यार्थियों को समझाने के लिए परिस्थिति का विकास करते हैं। अध्यापक जिस भी परिस्थिति की व्याख्या कर रहा होता है उसको एक नाम दिया जाता है। और उससे आधारित समस्याओं और प्रश्नों के उत्तर दिए जाते हैं। इस परिस्थिति में यह भी शामिल किया जाता है कि अध्यापक विद्यार्थिओं से क्या कुछ करने की अपेक्षा रखता है तथा स्वयं विद्यार्थी भी उसका अर्थ किस प्रकार समझते हैं।

2. ग्रुपिंग

ग्रुपिंग को अन्य दो वर्गों में बांटा जाता है-


१) पहला विद्यार्थिओं का समूहीकरण कैसे किया जाए इसका विचार किया जाता है। इसके अंतर्गत विद्यार्थिओं के कुछ समूह बनाये जाते हैं। इन समूहों को बनाने के लिए किस आधार का प्रयोग किया जाए, उन्हें गिनकर, उनके कपड़ों के आधार पर आदि निर्धारित किया जाता है। और यह सब उन चीजों के आधार पर डिज़ाइन किया जाता है जो सामिग्री आपके पास है।

दूसरा विद्यार्थिओं के पास पढ़ने के लिए सामिग्री की व्यवस्था करना।

3. सेतु (ब्रिज)

इसके अंतर्गत विद्यार्थिओं के पूर्व ज्ञान का सम्बन्ध नए ज्ञान से स्थापित किया जाता है। अर्थात यह विद्यार्थिओं के पूर्व ज्ञान को जानने और उस ज्ञान को नए ज्ञान से जोड़ने की प्रकिर्या है।

4. प्रश्न

अधिगम डिज़ाइन में प्रश्नों का होना अनिवार्य है। इस तरह के प्रश्न तैयार किये जाने चाहिए जिनके द्वारा विद्यार्थिओं के पूर्व ज्ञान को जानना आसान हो।

5. प्रदर्शन

इसके अंतर्गत छात्रों को उनके रिकॉर्ड प्रदर्शित किये जाते हैं।

6. प्रवर्तन (प्रतिबिम्ब)

इसके द्वारा छात्रों के संपूर्ण ज्ञान को जाना जाता है। छात्रों को पूर्व ज्ञान के रूप में क्या ज्ञात है तथा उनको क्या बताया जाना चाहिए यह सब प्रतिबिम्ब के अंतर्गत किया जाता है।

Trending articles,

Useful books,

B.Ed Files,

B.Ed Previous Year Papers

error: Content is protected !!