
परवरिश की शैलियाँ: पेरेंटिंग बच्चे के विकास और समग्र कल्याण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है; प्रत्येक माता-पिता के पास अपने बच्चों की परवरिश करने का एक अनूठा तरीका होता है; जो उनके विश्वासों, मूल्यों और अनुभवों से प्रभावित होता है;इस लेख में, हम विभिन्न प्रकार के पालन-पोषण और उनकी विशेषताओं का पता लगाएंगे, और एक बच्चे के जीवन पर उनके प्रभाव को उजागर करेंगे।
(Question: Explain the term parenting. Discuss in detail the various parenting styles that influence the developmental aspects of childhood and adolescence.)
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परवरिश (Parenting) का अर्थ
यह ऐसा व्यवहार है जो माता पिता अपने बच्चे या बालक पर अपनाते हैं; परवरिश के द्वारा बालक के सभी पहलुओं का ध्यान रखा जाता है; परवरिश दरअसल बालक के शैश्वावस्था से प्रौढ़ावस्था तक चलने वाली शारीरिक, सामाजिक तथा मानसिक क्रिया है; यह विभिन्न वातावरण के द्वारा व्यक्ति या बालक में भिन्नता का कारण बनती है।
इस क्रिया में बालक के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा की जाती है और बालक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इस क्रिया को किया जाता है।
अन्य शब्दों में पेरेंटिंग या परवरिश एक बच्चे या बच्चों की परवरिश और देखभाल करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। इसमें माता-पिता द्वारा अपने बच्चे के शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदारियां, कार्य और कार्य शामिल हैं। पेरेंटिंग में विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है, जैसे बुनियादी ज़रूरतें प्रदान करना, सुरक्षा सुनिश्चित करना, मार्गदर्शन प्रदान करना, मूल्यों को स्थापित करना, सीमाएँ निर्धारित करना और पोषण और सहायक वातावरण को बढ़ावा देना।
माता-पिता अपने बच्चे के चरित्र, कौशल और समग्र कल्याण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अपने बच्चे के विकास को पोषित करने, जीवन की चुनौतियों से निपटने में मदद करने और उन्हें वयस्कता के लिए तैयार करने के लिए जिम्मेदार हैं। पालन-पोषण में महत्वपूर्ण निर्णय लेना, मार्गदर्शन और अनुशासन देना, प्यार और समर्थन प्रदान करना और बच्चे के जीवन में सक्रिय रूप से शामिल होना शामिल है।
प्रभावी पेरेंटिंग में बच्चे की जरूरतों को पूरा करने और उनकी स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के बीच संतुलन बनाना शामिल है। इसके लिए बच्चे के बदलते विकासात्मक चरणों को अपनाने और उसके अनुसार पालन-पोषण के तरीकों को अपनाने की आवश्यकता होती है। अच्छे पालन-पोषण में प्रभावी संचार, सक्रिय रूप से सुनना और बच्चे के साथ सकारात्मक और सम्मानजनक संबंध बनाए रखना भी शामिल है।
पेरेंटिंग एक आजीवन यात्रा है जो समय के साथ विकसित होती है जैसे बच्चा बढ़ता है और विकसित होता है। इसके लिए बच्चे के कल्याण और विकास के लिए समर्पण, धैर्य, सहानुभूति और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। प्रत्येक माता-पिता की अपनी अनूठी शैली और पालन-पोषण के लिए दृष्टिकोण हो सकता है, जो उनके मूल्यों, विश्वासों, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और व्यक्तिगत अनुभवों से प्रभावित होता है।
परवरिश की शैलियाँ (Parenting Styles)
माता-पिता की शैली काफी भिन्न होती है, और विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने से माता-पिता को अपने बच्चों की परवरिश कैसे करनी है, इस बारे में सूचित निर्णय लेने में मदद मिल सकती है। प्रत्येक पेरेंटिंग शैली बच्चों के व्यवहार, भावनात्मक कल्याण और आत्म-सम्मान को प्रभावित करते हुए अपनी ताकत और चुनौतियों का सेट लाती है।
डायना बौमरिंड ने परवरिश की शैलियों का वर्गीकरण किया है। उनके अनुसार परवरिश की तीन शैलियाँ हैं-
- साधिकारत्मक परवरिश शैली (Authoritative Parenting Style)
- सत्तावादी परवरिश शैली (Authoritarian Parenting Style)
- अनुज्ञापालन परवरिश शैली (Permissive Parenting Style)
- असावधनीपूर्ण (Uninvolved or Neglectful Parenting Style)
बौमरिंड के बाद कई और लोगो ने परवरिश शैलियों को प्रस्तुत किया है लेकिन उन सभी ने इन तीन शैलियों को सामान रखा है और एक और शैली को उसमे जोड़ दिया है।
1. साधिकारत्मक परवरिश शैली

आधिकारिक पेरेंटिंग को उच्च स्तर की गर्मजोशी और जवाबदेही के साथ नियंत्रित और अपेक्षाओं के उचित स्तर के साथ जोड़ा जाता है। इस शैली को अपनाने वाले माता-पिता अपने बच्चों के लिए स्पष्ट नियम और अपेक्षाएँ स्थापित करते हैं, लेकिन स्वतंत्रता और व्यक्तित्व को भी प्रोत्साहित करते हैं। वे अपने बच्चों को अपने विचार और राय व्यक्त करने की अनुमति देते हुए मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते हैं। आधिकारिक माता-पिता खुले संचार को बढ़ावा देते हैं, अपने बच्चों को सुनते हैं और उनकी भावनाओं और दृष्टिकोणों पर विचार करते हैं।
आधिकारिक माता-पिता द्वारा पाले गए बच्चों में उच्च आत्म-सम्मान, सामाजिक क्षमता और शैक्षणिक उपलब्धि होती है। वे अपने माता-पिता के साथ एक मजबूत भावनात्मक बंधन बनाए रखते हुए स्वायत्तता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करते हैं। आधिकारिक पेरेंटिंग शैली बच्चों को आत्मनिर्भर, आत्म-अनुशासित और सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाने की नींव रखती है।
इस शैली को संतुलित शैली माना गया है। यह शैली बालक केंद्रित उपगमों पर आधारित है।
माता पिता बच्चों की भावनाओ को समझते हैं; इस शैली में बालक का पालन पोषण पूर्ण समझ के साथ किया जाता है। साधिकारत्मक शैली में बालको को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता ताकि वह अपने निर्णय लेने योग्य बन सकें; बालकों को स्वतंत्रता तो दी जाती है किन्तु वह संतुलित होती है और सीमित होती है।
इसका प्रभाव बच्चों पर दिखता है और वह निर्णय लेते समय इस स्वतंत्रता का इस्तेमाल कर सकते हैं; बच्चो को समय समय पर दंड भी इस शैली के अंतर्गत दिया जाता है तथा यह दंड अधिक कठिन नहीं होता। हर एक दंड के पीछे प्रेरणा छुपी होने के कारन दंड उतना कठिन नहीं होता; माता पिता भी बच्चों को समझते हैं तथा उनकी आवश्यकताओं को भी समझते हैं। इस शैली में माता पिता बालकों से आपसी विचार विमर्श करते हैं तथा बालकों की सलाह इत्यादि को सुनते हैं।
साधिकारत्मक परवरिश का बाल्यावस्था व किशोरावस्था पर प्रभाव
इस शैली में बच्चे स्वतंत्र होते हैं; यह स्वतंत्रता वच्चों को खुश और उत्साहित करती है; अतः इस शैली के अंतर्गत बच्चे खुश रहते हैं।
बच्चों खुश रहना उनके मानसिक स्वस्थ पर अच्छा प्रभाव डालता है अतः वह मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं।
बच्चों का आत्मसम्मान ऊँचा होता है तथा वह किसी भी मुकाबले में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
2. सत्तावादी (अधिनायकवादी) परवरिश शैली

अधिनायकवादी (सत्तावादी) पालन-पोषण को उच्च स्तर के नियंत्रण और मांगों के साथ-साथ गर्मजोशी और जवाबदेही के निम्न स्तर की विशेषता है। इस शैली को अपनाने वाले माता-पिता अपने बच्चों के लिए सख्त नियम और अपेक्षाएँ रखते हैं और उन्हें सख्ती से लागू करते हैं। वे आज्ञाकारिता और अनुरूपता को महत्व देते हैं और नियंत्रण के साधन के रूप में सजा और अनुशासन पर भरोसा कर सकते हैं।
अधिनायकवादी माता-पिता अक्सर अपने बच्चों की व्यक्तिगत जरूरतों और इच्छाओं पर अनुशासन और अधिकार को प्राथमिकता देते हैं।
एक अधिनायकवादी माता-पिता के माहौल में पले-बढ़े बच्चे आज्ञाकारी होते हैं, लेकिन कम आत्मसम्मान, सामाजिक क्षमता और निर्णय लेने के कौशल के साथ संघर्ष कर सकते हैं। वे बढ़ी हुई चिंता का प्रदर्शन कर सकते हैं और खुद को अभिव्यक्त करने या अपनी स्वतंत्रता पर जोर देने में कठिनाई हो सकती है। अधिनायकवादी पालन-पोषण की कठोर प्रकृति बच्चों की रचनात्मकता को सीमित कर सकती है और स्वयं की एक मजबूत भावना विकसित करने की उनकी क्षमता में बाधा डाल सकती है।
इसको रूढ़िवादी या सख्त परवरिश शैली के नाम से भी जाना जाता है; यहाँ माता-पिता का रवैया सख्त होता है तथा निर्देशात्मक होता है।
इस शैली में बच्चों से बहुत अपेक्षाएं राखी जाती हैं तथा बच्चों से उम्मीद राखी जाती है की वो सारे निर्देशों का पालन करें। माता-पिता की यह उम्मीदें वक़्त के साथ बढ़ती जाती हैं; माता-पिता के द्वारा दिए गए निर्देशों और नियमों को स्पष्ट नहीं किया जाता।
नियमों और निर्देशों को ना मानने पर यहाँ दंड भी दिया जाता है और पिटाई भी कर दी जाती है; इस शैली में परिवार का माहौल तनावपूर्ण रहना लाजमी है।
माता-पिता अपने निर्णय ज्यादातर बच्चों पर थोप देते हैं। बच्चों की भावनाओं आदि की दबा दिया जाता है। इस तरह की परवरिश अधिकतर कामकाजी वर्ग या मद्धम वर्ग में पायी जाती है।
सत्तावादी परवरिश शैली का बाल्यावस्था व किशोरावस्था पर प्रभाव-
इस शैली में पले बच्चे बेहद मायूस और उदास पाए जाते हैं; इस उदासीनता की वजह से इन बच्चों में अपने निर्णय लेने की क्षमता की कमी पायी जाती है।
बच्चों में आत्मसम्मान भी बिलकुल कम ही पाया जाता है; आत्मसम्मान न होने की वजह से बच्चे अपने निर्णय भी नहीं ले पाते।
बच्चे इस शैली में तनाव से भरे हुए होते हैं।
तनाव ग्रस्त और उदास होने की वजह से बच्चे अपनी परीक्षाओं या अन्य गतिविधियों में बच्चे प्रदर्शन नहीं कर पाते।
बच्चों में आत्मसम्मान न होने उनको सामाजिक होने से भी रोक देता है।
3. अनुज्ञानात्मक (अनुज्ञानमक या अनुमेय) परवरिश शैली

अनुमेय पालन-पोषण की विशेषता उच्च स्तर की गर्मजोशी और जवाबदेही है लेकिन नियंत्रण और अपेक्षाओं का निम्न स्तर है। जो माता-पिता इस शैली को अपनाते हैं वे उदार और कृपालु होते हैं, जिससे उनके बच्चों को काफी स्वतंत्रता और स्वायत्तता मिलती है। वे स्पष्ट नियम स्थापित करने या सीमाओं को लागू करने, अपने बच्चों की खुशी को प्राथमिकता देने और संघर्ष से बचने से बच सकते हैं।
अनुमेय पालन-पोषण के माहौल में पले-बढ़े बच्चे अक्सर आत्म-नियंत्रण, जिम्मेदारी और अधिकार के साथ संघर्ष करते हैं। उन्हें नियमों का पालन करने में कठिनाई हो सकती है और वे आवेगी व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं। स्पष्ट सीमाओं के बिना, वे समझने की सीमाओं और परिणामों के साथ संघर्ष कर सकते हैं। हालाँकि, अनुमेय पालन-पोषण विश्वास और खुले संचार के आधार पर सकारात्मक माता-पिता-बच्चे के संबंधों को बढ़ावा दे सकता है।
इस शैली में बालक को स्वतंत्र रखा जाता है; स्वतंत्रता के साथ-साथ बालक की स्वायत्ता को भी अधिक महत्व दिया जाता है। इस परवरिश शैली के अंतर्गत माता-पिता अपने बच्चों से ज्यादा अपेक्षाएं तथा आशाएं नहीं रखते।
दंड देना भी इस शैली के अंतर्गत ज्यादा उचित नहीं माना जाता तथा दंड देने में माता-पिता की रूचि भी कुछ ख़ास नहीं होती। बच्चों पर माता-पिता का कम ही नियंत्रण रहता है; इस शैली में माता पिता व्यस्त रहते हैं।
आजादी की वजह से बच्चे अक्सर बिगड़ भी जाते हैं; इस शैली की नर्म शैली भी कहा जाता है। माता-पिता का बच्चे की परवरिश में कुछ ख़ास ध्यान नहीं होता।
इस शैली में पलने बढ़ने वाले बालक कई जल्दी ही परिपक्वा हो जाते हैं; परिपक्वा होने के बाद बच्चे खुद अपने तरीके से अपना जीवन व्यतीत करने लगते हैं। कभी-कभी माता-पिता खुद गलत व्यवहार को अपना लेते हैं; माता पिता के ऐसे होने की वजह से ही वह बच्चे पर अधिक नियंत्रण नहीं रख पाते। इस प्रकार की शैली माध्यम वर्ग व कामकाजी माता पिता द्वारा अपनाई जाती है।
अनुज्ञात्मक शैली का बाल्यावस्था व किशोरावस्था पर प्रभाव:
बच्चों पर अधिक ध्यान न देने की वजह से इस शैली के अंतर्गत पले-बढे बच्चे खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते।
वह बहुत हिंसक प्रवर्ति के होते हैं; इस शैली में बालक में अनुशाशन तथा नियमों के पालन करने का अभाव होता हैं।
वह किसी भी नियम का पालन नहीं करते।
इस शैली के बच्चे अधिकतर घमंडी और अभिमानी होते हैं।
इन्ही वजहों से ये बच्चे समस्याओं से भी घिरे रहते हैं।
4. असावधनीपूर्ण (असंबद्ध) परवरिश शैली
असंबद्ध पालन-पोषण (परवरिश शैली) को गर्मजोशी/जवाबदेही और नियंत्रण/अपेक्षाओं दोनों के निम्न स्तरों की विशेषता है। इस शैली को अपनाने वाले माता-पिता भावनात्मक रूप से दूर होते हैं और अपने बच्चों के जीवन में शामिल नहीं होते हैं। वे न्यूनतम मार्गदर्शन, सहायता और पर्यवेक्षण प्रदान करते हैं। असंबद्ध माता-पिता अपने स्वयं के जीवन में व्यस्त हो सकते हैं या उनके पास सीमित संसाधन या पालन-पोषण कौशल हो सकते हैं।
माता-पिता के बिना पालन-पोषण के माहौल में पले-बढ़े बच्चे भावनात्मक उपेक्षा और समर्थन की कमी का अनुभव कर सकते हैं। वे आत्म-सम्मान, भावनात्मक विनियमन और सामाजिक क्षमता के साथ संघर्ष कर सकते हैं। माता-पिता की भागीदारी की अनुपस्थिति बच्चे के समग्र विकास और कल्याण पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है।
माता-पिता का पूर्णरूप से अभाव या उनका बच्चे के साथ ना रहना इस तरह की लापरवाह वाली या असावधनीपूर्ण शैली के अंतर्गत आता हैं। इस शैली में माता-पिता नाममात्र अपेक्षाएं रखते हैं; बालकों के लिए कोई भी नियम या सीमा निर्धारित नहीं की जाती।
बच्चों की आवश्यकताओं का भी ध्यान नहीं रखा जाता; माता-पिता बच्चे की कुछ आवश्यकताओं जैसे -खाना, पीना, कपडे-लत्ते को अपना कर्त्तव्य मानते हैं। बच्चों और माता-पिता के बीच बात-चीत या सम्प्रेषण ना के बराबर ही होता है।
किशोरावस्था आते आते बच्चे भगोड़ा प्रवर्ति के हो जाते हैं; इस शैली में बालक अपनी आयु से पहले ही परिपक्वा हो जाता है। इस शैली के नकारात्मक रूप की वजह से बालक अपने माँ-बाप के प्रति विरोधी रवैया अपनाता है।
असावधनीपूर्ण परवरिश शैली का प्रभाव बाल्यावस्था व किशोरावस्था पर क्या पड़ता है?
इन बच्चों में हिंसक प्रवर्ति पायी जाती है; यह बच्चे आवेगी व्यवहार के होते हैं।
बच्चे नशा आदि में पद जाते हैं।
ये बच्चे अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते।
कई बार यह बच्चे आत्महत्या आदि करने की भी कोशिश करते हैं।
बच्चे का अपने ऊपर नियंत्रण न होने की वजह से वह काम को समय पर नहीं कर पाते या करना ही नहीं चाहते।
ये बच्चे अपनी परीक्षा व अन्य गतिविधियों में भी कुछ ख़ास प्रदर्शन नहीं दिखा पाते।
निष्कर्ष
अंत में, बौम्रिंड की चार पेरेंटिंग शैलियाँ माता-पिता की गर्मजोशी और बच्चों के विकास पर नियंत्रण के प्रभाव में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। जबकि आधिकारिक पेरेंटिंग आम तौर पर सकारात्मक परिणामों से जुड़ी होती है, पेरेंटिंग शैलियों को समझते समय व्यक्तिगत अंतर और सांस्कृतिक कारकों पर विचार करना आवश्यक है। कुंजी एक पोषण और सहायक वातावरण बनाना है जो बच्चों के स्वस्थ विकास को बढ़ावा देता है, उनकी स्वायत्तता, आत्म-सम्मान और भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देता है।
अधोलिखित के अनुसार यह कहा जा सकता है कि परवरिश कि कई शैलियां हैं तथा उन सब में सबसे प्रभावपूर्ण और लाभदायक साधिकारत्मक परवरिश शैली है। अतः बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए सबसे उत्तम परवरिश शैली साधिकारत्मक शैली ही है।
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