परवरिश की शैलियाँ क्या है? (What are Parenting Styles?)

परवरिश की शैलियाँ

परवरिश की शैलियाँ: इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आखिर परवरिश की शैलियाँ क्या है? इसके साथ-साथ परवरिश क्या है (Parenting) की भी चर्चा करेंगे।

परवरिश की शैलियाँ क्या है, टॉपिक से परीक्षा में 16 अंक का प्रश्न बनता है और ये टॉपिक CTET, HTET, UPTET, MPTET, और CRSU, MDU, IGU, GJU, CBLU, IGNOU तथा JAMIA जैसे सभी संस्थानों में पूछा जाता है।

आइए इसपर चर्चा करें। (Explain the term parenting. Discuss in detail the various parenting styles that influence the developmental aspects of childhood and adolescence.)

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परवरिश (Parenting) का अर्थ

यह ऐसा व्यवहार है जो माता पिता अपने बच्चे या बालक पर अपनाते हैं; परवरिश के द्वारा बालक के सभी पहलुओं का ध्यान रखा जाता है

परवरिश दरअसल बालक के शैश्वावस्था से प्रौढ़ावस्था तक चलने वाली शारीरिक, सामाजिक तथा मानसिक क्रिया है; यह विभिन्न वातावरण के द्वारा व्यक्ति या बालक में भिन्नता का कारण बनती है।

इस क्रिया में बालक के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा की जाती है और बालक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इस क्रिया को किया जाता है।

परवरिश की शैलियाँ (Parenting Styles)

डायना बौमरिंड ने परवरिश की शैलियों का वर्गीकरण किया है। उनके अनुसार परवरिश की तीन शैलियाँ हैं-

  • साधिकारत्मक परवरिश शैली
  • संतावादी परवरिश शैली
  • अनुज्ञापालन परवरिश शैली

बौमरिंड के बाद कई और लोगो ने परवरिश शैलियों को प्रस्तुत किया है लेकिन उन सभी ने इन तीन शैलियों को सामान रखा है और एक और शैली को उसमे जोड़ दिया है।

1. साधिकारत्मक परवरिश शैली

इस शैली को संतुलित शैली माना गया है। यह शैली बालक केंद्रित उपगमों पर आधारित है।

माता पिता बच्चों की भावनाओ को समझते हैं; इस शैली में बालक का पालन पोषण पूर्ण समझ के साथ किया जाता है।

साधिकारत्मक शैली में बालको को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता ताकि वह अपने निर्णय लेने योग्य बन सकें; बालकों को स्वतंत्रता तो दी जाती है किन्तु वह संतुलित होती है और सीमित होती है।

इसका प्रभाव बच्चों पर दिखता है और वह निर्णय लेते समय इस स्वतंत्रता का इस्तेमाल कर सकते हैं; बच्चो को समय समय पर दंड भी इस शैली के अंतर्गत दिया जाता है तथा यह दंड अधिक कठिन नहीं होता।

हर एक दंड के पीछे प्रेरणा छुपी होने के कारन दंड उतना कठिन नहीं होता; माता पिता भी बच्चों को समझते हैं तथा उनकी आवश्यकताओं को भी समझते हैं।

इस शैली में माता पिता बालकों से आपसी विचार विमर्श करते हैं तथा बालकों की सलाह इत्यादि को सुनते हैं।

साधिकारत्मक परवरिश का बाल्यावस्था व किशोरावस्था पर प्रभाव

इस शैली में बच्चे स्वतंत्र होते हैं; यह स्वतंत्रता वच्चों को खुश और उत्साहित करती है; अतः इस शैली के अंतर्गत बच्चे खुश रहते हैं।

बच्चों खुश रहना उनके मानसिक स्वस्थ पर अच्छा प्रभाव डालता है अतः वह मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं।

बच्चों का आत्मसम्मान ऊँचा होता है तथा वह किसी भी मुकाबले में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

2. संतावादी परवरिश शैली

इसको रूढ़िवादी या सख्त परवरिश शैली के नाम से भी जाना जाता है; यहाँ माता-पिता का रवैया सख्त होता है तथा निर्देशात्मक होता है।

इस शैली में बच्चों से बहुत अपेक्षाएं राखी जाती हैं तथा बच्चों से उम्मीद राखी जाती है की वो सारे निर्देशों का पालन करें।

माता-पिता की यह उम्मीदें वक़्त के साथ बढ़ती जाती हैं; माता-पिता के द्वारा दिए गए निर्देशों और नियमों को स्पष्ट नहीं किया जाता।

नियमों और निर्देशों को ना मानने पर यहाँ दंड भी दिया जाता है और पिटाई भी कर दी जाती है; इस शैली में परिवार का माहौल तनावपूर्ण रहना लाजमी है।

माता-पिता अपने निर्णय ज्यादातर बच्चों पर थोप देते हैं।

बच्चों की भावनाओं आदि की दबा दिया जाता है।

इस तरह की परवरिश अधिकतर कामकाजी वर्ग या मद्धम वर्ग में पायी जाती है।

संतावादी परवरिश शैली का बाल्यावस्था व किशोरावस्था पर प्रभाव-

इस शैली में पले बच्चे बेहद मायूस और उदास पाए जाते हैं; इस उदासीनता की वजह से इन बच्चों में अपने निर्णय लेने की क्षमता की कमी पायी जाती है।

बच्चों में आत्मसम्मान भी बिलकुल कम ही पाया जाता है; आत्मसम्मान न होने की वजह से बच्चे अपने निर्णय भी नहीं ले पाते।

बच्चे इस शैली में तनाव से भरे हुए होते हैं।

तनाव ग्रस्त और उदास होने की वजह से बच्चे अपनी परीक्षाओं या अन्य गतिविधियों में बच्चे प्रदर्शन नहीं कर पाते।

बच्चों में आत्मसम्मान न होने उनको सामाजिक होने से भी रोक देता है।

3. अनुज्ञानात्मक ( अनुज्ञानमक) परवरिश शैली

इस शैली में बालक को स्वतंत्र रखा जाता है; स्वतंत्रता के साथ-साथ बालक की स्वायत्ता को भी अधिक महत्व दिया जाता है।

इस परवरिश शैली के अंतर्गत माता-पिता अपने बच्चों से ज्यादा अपेक्षाएं तथा आशाएं नहीं रखते।

दंड देना भी इस शैली के अंतर्गत ज्यादा उचित नहीं माना जाता तथा दंड देने में माता-पिता की रूचि भी कुछ ख़ास नहीं होती।

बच्चों पर माता-पिता का कम ही नियंत्रण रहता है; इस शैली में माता पिता व्यस्त रहते हैं।

आजादी की वजह से बच्चे अक्सर बिगड़ भी जाते हैं; इस शैली की नर्म शैली भी कहा जाता है।

माता-पिता का बच्चे की परवरिश में कुछ ख़ास ध्यान नहीं होता।

इस शैली में पलने बढ़ने वाले बालक कई जल्दी ही परिपक्वा हो जाते हैं; परिपक्वा होने के बाद बच्चे खुद अपने तरीके से अपना जीवन व्यतीत करने लगते हैं।

कभी-कभी माता-पिता खुद गलत व्यवहार को अपना लेते हैं; माता पिता के ऐसे होने की वजह से ही वह बच्चे पर अधिक नियंत्रण नहीं रख पाते।

इस प्रकार की शैली माध्यम वर्ग व कामकाजी माता पिता द्वारा अपनाई जाती है।

अनुज्ञात्मक शैली का बाल्यावस्था व किशोरावस्था पर प्रभाव:

बच्चों पर अधिक ध्यान न देने की वजह से इस शैली के अंतर्गत पले-बढे बच्चे खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते।

वह बहुत हिंसक प्रवर्ति के होते हैं; इस शैली में बालक में अनुशाशन तथा नियमों के पालन करने का अभाव होता हैं।

वह किसी भी नियम का पालन नहीं करते।

इस शैली के बच्चे अधिकतर घमंडी और अभिमानी होते हैं।

इन्ही वजहों से ये बच्चे समस्याओं से भी घिरे रहते हैं।

4. असावधनीपूर्ण परवरिश शैली

माता-पिता का पूर्णरूप से अभाव या उनका बच्चे के साथ ना रहना इस तरह की लापरवाह वाली या असावधनीपूर्ण शैली के अंतर्गत आता हैं।

इस शैली में माता-पिता नाममात्र अपेक्षाएं रखते हैं; बालकों के लिए कोई भी नियम या सीमा निर्धारित नहीं की जाती।

बच्चों की आवश्यकताओं का भी ध्यान नहीं रखा जाता; माता-पिता बच्चे की कुछ आवश्यकताओं जैसे -खाना, पीना, कपडे-लत्ते को अपना कर्त्तव्य मानते हैं।

बच्चों और माता-पिता के बीच बात-चीत या सम्प्रेषण ना के बराबर ही होता है।

किशोरावस्था आते आते बच्चे भगोड़ा प्रवर्ति के हो जाते हैं; इस शैली में बालक अपनी आयु से पहले ही परिपक्वा हो जाता है।

इस शैली के नकारात्मक रूप की वजह से बालक अपने माँ-बाप के प्रति विरोधी रवैया अपनाता है।

असावधनीपूर्ण परवरिश शैली का प्रभाव बाल्यावस्था व किशोरावस्था पर क्या पड़ता है?

इन बच्चों में हिंसक प्रवर्ति पायी जाती है; यह बच्चे आवेगी व्यवहार के होते हैं।

बच्चे नशा आदि में पद जाते हैं।

ये बच्चे अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते।

कई बार यह बच्चे आत्महत्या आदि करने की भी कोशिश करते हैं।

बच्चे का अपने ऊपर नियंत्रण न होने की वजह से वह काम को समय पर नहीं कर पाते या करना ही नहीं चाहते।

ये बच्चे अपनी परीक्षा व अन्य गतिविधियों में भी कुछ ख़ास प्रदर्शन नहीं दिखा पाते।

निष्कर्ष

अधोलिखित के अनुसार यह कहा जा सकता है कि परवरिश कि कई शैलियां हैं तथा उन सब में सबसे प्रभावपूर्ण और लाभदायक साधिकारत्मक परवरिश शैली है। अतः बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए सबसे उत्तम परवरिश शैली साधिकारत्मक शैली ही है।

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