परीक्षा क्या है? What is examination?

परीक्षा क्या है? What is examination?
परीक्षा क्या है?

परीक्षा क्या है; इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानेंगे कि परीक्षा क्या है (What is examination) और यह भी जानेंगे कि परीक्षा का महत्व (Importance of examination) तथा उद्देश्य (Objectives of examination) क्या है। परीक्षा क्या है (What is examination) टॉपिक बी एड द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों के लिए बेहद उपयोगी है।

परीक्षा क्या है (Meaning of examination)

छात्रों की उपलब्धि से संबंधित प्रमाणों को इकट्ठा करने की प्रक्रिया को परीक्षा (Examination) कहा जाता है।

इस प्रक्रिया में परीक्षणों की रचना करना, प्रशासन, परीक्षाओं का संचालन करना, उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करना तथा छात्रों की उपलब्धि अदि सूचित करना शामिल है।

किसी छात्र या भावी प्रक्टिशनर की क्षमताओं की जाँच को परीक्षा कहते है; रचना, विषय, कठिनाई आदि के अनुसार परीक्षा अनेकों प्रकार की होती है।

परीक्षा मूल्यांकन करने का एक सबसे बेहतर तरीका है; इससे इंसान के अंदर की क्षमता तथा आत्मविश्वास का सही से आकलन किया जा सकता है।

परीक्षा की परिभाषाएं (Definitions of Examination)

किसी क्षेत्र में छात्रों की उपलब्धि अथवा योग्यता की जाँच के लिए जो प्रक्रिया प्रयुक्त की जाती है, उसे परीक्षा कहते हैं ।

कोठारी कमीशन (1964-1966) के अनुसार, “मूल्यांकन/परीक्षा एक निरंतर चलने वाली प्रकिर्या है जो शिक्षा की संपूर्ण प्रणाली का एक अभिन्न अंग है तथा जिसका शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह छात्र के पढ़ने की आदतों एवं अध्यापक के पढ़ाने की पध्यतियों पर गहरा प्रभाव डालता है तथा इस प्रकार यह ना केवल शैक्षिक निष्पत्ति के मापने में अपितु उसके सुधार में भी सहायक होता है।”

परीक्षा का उद्देश्य (Purposes of examination)

परीक्षा बेशक बेहद आवश्यक है अतः इसके अनेक उद्देश्य होते हैं। कुछ उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

जानने के लिए कि विद्यार्थी पढाई में रुचि लेता है या नहीं; विद्यार्थियों के धैर्य, परिश्रम, ज्ञान, प्रस्तुत करने की क्षमता, गुणों आदि की जांच करने के लिए।

अध्यापकों की कुशलता, क्षमता,योग्यता की जांच करने हेतु; कक्षा में पढ़ाई गयी बातों में से कितनी बातें विद्यार्थी ने सीखी हैं यह जानने के लिए।

पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को सफल नागरिक बनाने में समर्थ है या नहीं; कहीं पाठ्यक्रम तथा अध्यनक्रम ज्यादा बोझल तो नहीं है।

क्या पाठ्यक्रम उचित पद की प्राप्ति में सहायक है या नहीं।

परीक्षा का महत्व (Importance of examination)

मुदायलियर कमीशन (माध्यमिक शिक्षा आयोग) 1952-53 के अनुसार, “परीक्षा तथा मूल्यांकन का शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है।

विद्यार्थियों ने अपने अध्ययन काल में किस सीमा तक उन्नति की है, इसकी जांच करना शिक्षक तथा अभिभावक दोनों के लिए आवश्यक है।

वर्तमान में परीक्षा की दो पद्धतियां प्रचलन में हैं-

a) बाह्य परीक्षाएं (External exams):

इन परीक्षाओं की व्यवस्था तथा संचालन शिक्षा बोर्ड तथा विश्वविद्यालय ही अपने स्तर पर करते हैं।

b) आंतरिक परीक्षाएं (Internal Exams):

विद्यालयों के अध्यापकों द्वारा प्रवेश परीक्षा, साप्ताहिक टेस्ट, मासिक परीक्षा, तीन मासिक परीक्षा, अर्धवार्षिक परीक्षा तथा वार्षिक परीक्षाओं की योजना बनाना तथा उसे क्रियान्वित करना आंतरिक परीक्षा कहलाता है।

परीक्षाएं हमेशा से ही आकलन करने में मददगार रहीं हैं। परीक्षाओं के लाभों को इस प्रकार समझा जा सकता है-

  1. अध्यापक अपने तथा शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं; मार्गदर्शन में सहयोगी।
  2. छात्रों के वास्तविक मूल्यांकन के लिए आवश्यक; परीक्षा के उद्देश्यों का स्प्ष्टीकरण।
  3. परीक्षा पास करने पर सर्टिफिकेट प्रदान करने हेतु।
  4. छात्रों की उन्नति तथा प्रगति का आंकलन; छात्रवृति प्रदान करने में सहायक।
  5. विद्यालय तथा अध्यापकों की निपुणता की जांच करने हेतु सहायक; व्यक्तित्व की जांच के लिए।
  6. पाठ्यक्रम में सुधार या बदलाव हेतु; एक सामान माप-दंड के लिए।
  7. विद्यालय में उपलब्ध सुविधाओं का आकलन।

परीक्षाओं के गुण (Merits of examination)

  • छात्रों के वर्गीकरण में सहायक।
  • सस्ती विधि।
  • अध्यापकों की कार्यप्रणाली की जांच में सहायक।
  • तुलना का आधार।
  • प्रमाण-पत्र का आधार।
  • मापदंडों की स्थिति।
  • उपयोग में आसानी।
  • प्रेरणादायक मूल्य।
  • मेधावी छात्रों की पहचान।
  • विद्यालय की समय-सरणी आदि में उपयोगी।
  • विद्यालय के शैक्षिक माहौल की जानकारी में सहायक।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोष

प्रणालियों में कमियां होना एक आम बात है। हालांकि इन कमियों को समय के साथ दूर कर लिया जाता है लेकिन हर एक अगली प्रणाली के अनुसार पिछली प्रणाली में दोष पाए ही जाते हैं।

इन कमियों को देखते हुए भिन्न-भिन्न विद्मानों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये हैं।

उनमें से कुछ विद्मानों के विचार निम्नलिखित हैं-

रायबर्न के अनुसार,” इसमें कोई शक नहीं कि परीक्षाएं सृजनात्मक कार्य की दुश्मन होती हैं।”

राधाकृष्णन कमीशन के शब्दों में, “यदि परीक्षाएं आवश्यक हैं तो इनमें सुधार उससे कहीं अधिक आवश्यक है। “

बी. इस .ब्लूम के अनुसार, परीक्षा प्रणाली जो टेस्टों,पाठ्यक्रम, विषय-वास्तु, पाठ्यपुस्तक एवं शिक्षा विधियों से मिलकर बनी है, में एक बहुत बड़ी शाजिश रची हुई है जिसके कारण शिक्षा से सम्बंधित हर एक व्यक्ति यह विश्वाश करने लगा है कि सीखने का मतलब रटना द्वारा याद करना है।

वर्तमान परीक्षा प्रणाली में गुणों के साथ साथ कुछ दोष भी हैं। इस शिक्षा प्रणाली के दोष निम्नलिखित हैं –

  • आर्थिक पक्ष पर जोर देने वाली प्रणाली।
  • आत्ममुखी प्रकृति की प्रणाली।
  • छात्र के सर्वांगीण विकास की अनदेखी की संभावनाएं।
  • विद्यार्थियों का केवल तैयार मसौदे पर निर्भर रहना।
  • विद्यार्थियों का सीखने के वजाये परीक्षा पास करने के तरीकों को सीखने पर जोर।
  • रटने पर आधारित प्रणाली।
  • प्रामाणिकता से दूर।
  • अधिक अंक प्राप्त करने को बुद्धिमत्ता की पहचान मन जाता है।
  • अप्रगतिशील प्रणाली।
  • आर्थिक पक्ष पर जोर देने वाली प्रणाली।
  • आत्ममुखी प्रकृति की प्रणाली।
  • छात्र के सर्वांगीण विकास की अनदेखी की संभावनाएं।
  • विद्यार्थियों का केवल तैयार मसौदे पर निर्भर रहना।
  • विद्यार्थियों का सीखने के वजाये परीक्षा पास करने के तरीकों को सीखने पर जोर।
  • रटने पर आधारित प्रणाली।

और

  • प्रामाणिकता से दूर।
  • अधिक अंक प्राप्त करने को बुद्धिमत्ता की पहचान मन जाता है।
  • अप्रगतिशील प्रणाली।
  • आर्थिक पक्ष पर जोर देने वाली प्रणाली।
  • आत्ममुखी प्रकृति की प्रणाली।
  • छात्र के सर्वांगीण विकास की अनदेखी की संभावनाएं।
  • विद्यार्थियों का केवल तैयार मसौदे पर निर्भर रहना।
  • विद्यार्थियों का सीखने के वजाये परीक्षा पास करने के तरीकों को सीखने पर जोर।
  • रटने पर आधारित प्रणाली।
  • प्रामाणिकता से दूर।
  • अधिक अंक प्राप्त करने को बुद्धिमत्ता की पहचान मन जाता है।
  • अप्रगतिशील प्रणाली।
  • अध्यापकों पर अत्यधिक बोझ का डर।
  • भाग्य पर आधारित प्रणाली।
  • तीन घंटे की परीक्षा पूर्ण मूल्यांकन में असमर्थ है।
  • परिणाम की चिंता बढ़ाते हैं।
  • विश्वसनीयता की कमी।
  • नक़ल की प्रवृति को बढ़ावा मिलता है।
  • दैनिक कार्यों के प्रति उदासीनता।
  • स्वास्थ पर बुरा प्रभाव।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली दोषित भी है; इस सन्दर्भ में पी. सी. रेन. का कहना है कि, “परीक्षा प्रणाली का एक अच्छा सेवक है परन्तु बुरा भी है और यह हेडमास्टर पर निर्भर करता है कि वह उसे स्वामी बनाये या सेवक।”

ऐसा नहीं है कि इन दोषों को दूर नहीं किया जा सकता। अगर कुछ चीज़ों को ध्यान में रखा जाए तो इन कमियों को दूर किया जा सकता है।

इस प्रणाली में सुधार हेतु देश के कुछ आयोगों तथा कमिटियों द्वारा दिए गए सुझाव निम्न हैं-

1. आंतरिक परीक्षाओं का महत्व

विद्यालयों ,संस्थाओं में आंतरिक परीक्षाएं लेकर विद्यालयों में परीक्षाओं और अन्य शिक्षण सम्बन्धी गतिविधियों का रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए। उस रिकॉर्ड को वार्षिक (अंतिम परीक्षा) के साथ जोड़कर परिणाम घोसित किया जाना चाहिए।

2. परीक्षाओं की संख्या कम की जाए

बाह्य परीक्षाएं एक वर्ष में एक बार ही होनी चाहियें तथा लिखित परीक्षाओं में निबंधात्मक प्रश्न कम ,लघुत्तरात्मक तथा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों अधिक होने चाहिए।

यूनेस्को (UNESCO) की रिपोर्ट 1978 की शिफारिशें

  • बाह्य परीक्षाओं को समाप्त किया जाए।
  • उपलब्धियों के स्तर में सुधार किये जाए।
  • निरंतर पुनर्निरीक्षण कि आवश्यकता को पहचाना जाए।
  • शैक्षिक तथा शैक्तिक आदि बातों का मूल्यांकन किया जाए।
  • नियंत्रण तथा सुधार होना चाहिए।
  • ग्रेड व्यवस्था पर जोर।
  • प्रश्न बैंक का विकास आवश्यक।

कोठारी आयोग (1964-66) कि शिफारिशें

  • बाह्य परीक्षाओं में प्रश्नों को वस्तुनिष्ठ बनाया जाना चाहिए।
  • लिखित परीक्षाओं में सुधार किया जाए।
  • विद्यार्थियों को बोर्ड के प्रमाणपत्र के साथ-साथ शिक्षण संस्था से विद्यालय लेखा भी दिया जाना चाहिए।
  • जिन योग्यताओं का मापन लिखित परीक्षाओं द्वारा नहींहो सकता, उनके मापन के लिए नए तरीके इज़ाद किये जाएँ।
  • उन विद्यालयों का अनुदान बंद किया जाए जिनका मूल्यांकन उत्तरदायी नहीं है।
  • आंतरिक जांच के लिए अध्यापक निर्मित परीक्षाओं, मौखिक परीक्षाओं, प्रयोगात्मक परीक्षाओं आदि का प्रयोग किया जाए।
  • बाह्य परीक्षाओं में प्रश्नों को वस्तुनिष्ठ बनाया जाना चाहिए।
  • लिखित परीक्षाओं में सुधार किया जाए।
  • विद्यार्थियों को बोर्ड के प्रमाणपत्र के साथ-साथ शिक्षण संस्था से विद्यालय लेखा भी दिया जाना चाहिए।
  • जिन योग्यताओं का मापन लिखित परीक्षाओं द्वारा नहींहो सकता, उनके मापन के लिए नए तरीके इज़ाद किये जाएँ।
  • उन विद्यालयों का अनुदान बंद किया जाए जिनका मूल्यांकन उत्तरदायी नहीं है।
  • आंतरिक जांच के लिए अध्यापक निर्मित परीक्षाओं, मौखिक परीक्षाओं, प्रयोगात्मक परीक्षाओं आदि का प्रयोग किया जाए।
  • प्रमाणपत्रों में पास-फेल की घोसणा नहीं होनी चाहिए।

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