
Gender Stereotype: इस आर्टिकल में हम यौन रुधियुक्तियाँ (Gender Stereotype), यौन पितृसत्ता (Gender and Patriarchy), तथा यौन भेदभाव (Gender Bias) के वारे में चर्चा करेंगे।
यौन रूढीयुक्तिओं (Gender Stereotyping), यौन तथा पितृसत्ता (Gender and Patriarchy), तथा यौन भेदभाव (Gender Bias) के इस आर्टिकल में ये भी जानेंगे की किस तरह यौन तथा पितृसत्ता (Gender and Patriarchy), यौन भेदभाव (Gender Bias) तथा यौन रुधियुक्तियाँ (Gender Stereotype) हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
यौन रूढ़ियुक्तियाँ (Gender Stereotype)
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इससे अभिप्राय उन बातों से है जिनको प्राचीन काल से ही बिना किसी प्रमाण के मान लिया जाता है।
उदाहरण के तौर पर घर में लड़कों को शारीरिक रूप से मजबूत समझा जाता है और उनसे घर के वही काम कराये जाते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल हो।
वहीँ दूसरी तरफ लड़कियों को शारीरिक रूप से कमजोर मान लिया जाता है और उनसे वही कार्य कराये जाते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल न होता हो।
रूढीयुक्तिओं की परिभाषाएं (Definitions Of Stereotype):
कुप्पूस्वामी के अनुसार “हम रूढ़ि युक्तिओं को त्रुटिपूर्ण वर्गीकरण करने वाली धारणा के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जिनके साथ व्यक्तिओं की अन्य समूहों के वारे में कोई प्रबल संवेगात्मक भावना जुडी रहती है।”
किंबल यंग के अनुसार “रूढ़ि युक्तियाँ वह मिथ्या वर्गीकरण करने वाली धारणाएं होती हैं जिसके साथ, नियमानुसार, कोई प्रबल संवेगात्मक भावना, पसंद या नापसंद की भावना, स्वकृति या अस्वकृति की भावना जुडी होती है।”
जहोदा के अनुसार “रुधियुक्तियाँ एक समूह के लोगों के प्रति पूर्व कल्पित मतों का संकेत करती हैं अर्थात यह प्रत्येक घटना के नए निर्णय से निष्कर्ष के रूप में नहीं निकलती हैं बल्कि यह निर्णय और प्रत्यक्षीकरण के उत्कृष्ट उदाहरणस्वरूप होती हैं।”
अधोलिखित परिभाषाओं के आधार पर रूढीयुक्तिओं के सम्बन्ध में कुछ तथ्य:
रूढ़ियुक्तियाँ ऐसे विचार तथा प्रविर्तियाँ हैं जो मष्तिष्क में चित्र जागृत कर देती हैं। रूढ़ि युक्ति अंधविश्वासों का ऐसा समुच्य है जो गलत या अधूरी सूचना पर आधारित है । तथा जिसे पूरे समूह के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
रूढ़ि युक्तियाँ नकारात्मक गुणों पर भी आधारित होती हैं और सकारात्मक गुणों पर भी।
रूढ़ि युक्तियाँ केवल अनुमानित होती हैं और उनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता।
अतः यह किसी भी प्रकार से किसी भी समूह के बारे में सत्य नहीं दर्शातीं।
लिंग भूमिका तथा रूढ़ियुक्तियाँ (Gender Stereotype):
इन्ही रूढीयुक्तिओं के आधार पर लड़कियों और महिलाओं से अपेक्षाएं की जाती हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं-
वे सहनशील, आदर करने वाली, सौम्य, दूसरों का ख्याल रखने वाली और आज्ञाकारी हों। वे पुरुषों की आज्ञा का पालन करें और उनको खुश करने वाली हों।
उनका रवैया सभी के प्रति संतुलित हो। वे बच्चों तथा घरेलु कामकाज की अच्छे से देखभाल करें। उनका पहनावा और बोली मर्यादापूर्ण हो।
लड़कों और पुरुषों से अपेक्षाएं की जाती हैं-
वे मजबूत हों और खुद की भावनाओं और संवेदनाओं को दबा के रखें। वे परिवार के संरक्षक हों।
वे परिवार के महत्वपूर्ण फैसले लें। सामान्य कार्यों में पहल करें तथा मर्दों से जुड़े कार्य ही करें।
यौन रूढीयुक्तिओं (Gender Stereotype) के लड़कों तथा लड़कियों पर पड़ने वाले प्रभाव:
इन्ही मान्यताओं या रूढ़िवादी सोच के चलते लोग महिलाओं को पुरुषों से अलग समझते हैं और कमजोर भी। क्यूंकि लड़कों तथा लड़कियों के कार्य निर्धारित कर दिए गए हैं ।
इसलिए उनको वही कार्य करने होते हैं जिससे उनके कौशल का विकास नहीं हो पाता।
क्यूंकि लड़कियों को घर का कार्य करने और बच्चे पालने तक ही सीमित रखा जाता है इसलिए लड़कियों का कच्ची उम्र में ही विवाह कर दिया जाता है ।
जिसकी वजह से वो कम उम्र में ही माँ बन जाती हैं और उनके शरीर पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
लड़कियों के स्वस्थ पर कम ध्यान दिया जाता है। लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता तथा लड़कों की शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।
महिलाओं को पित्रसम्पत्ति में भी हिस्सा नहीं मिलता। निर्णायक मंडलों में महिलाओं को कम महत्व दिया जाता है।
महिला की मर्जी को महत्व नहीं दिया जाता अतः वो अपनी मर्ज़ी से तलाक भी नहीं ले सकतीं।
लड़कों और पुरुषों के साथ भी भेदभाव किये जाते हैं जैसे अगर पुत्र घर में सबसे बड़ा है- तो उसी को पूरे वारीवार का भार सौंप दिया जाता है और कई स्थितिओं में तो उसकी शिक्षा पर भी रोक लगा दी जाती है।
लड़के अगर घर या रसोईघर से सम्बंधित कोई कार्य कर लें तो उनको चिढ़ाया जाता है और उनके कौशल को विकसित नहीं होने दिया जाता।
अगर कोई लड़का या पुरुष रो दे और अपने संवेदनाएं प्रकट करना चाहे तो उसे “लुगाई या औरतों” के तरह रोने वाला कहा जाता है।
पितृसत्ता (Patriarchy)
पितृसत्ता (Patriarchy) व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें पुरुष को प्रधान या मुखिया माना जाता है। अतः पितृसत्ता इस प्रकार की सामजिक तथा विचारात्मक संरचना है जिसमें पुरुष को स्त्री से वरिष्ठ समझा जाता है।
हमारा समाज हमेशा से ही पुरुष प्रधान रहा है जिसमें स्त्रीओं को दासी समझा जाता रहा है; स्त्रीओं को पुरुष के सामान अधिकारों से भी वंचित रखा जाता रहा है।
स्त्रियों को हमेशा से ही घर तक सीमित रखा गया है; जिसमें वो घर के काम-काज देखती हैं, संतान पैदा करना और उनको पालन पोषण करना शामिल था।
कुछ धार्मिक ग्रंथों में भी स्त्री को पुरुष के अधीन ही दिखाया गया है; और पुरुषों द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता रहा है।
अलग-अलग धर्मों में नारी का स्थान सामान ही रहा है जिसमें से हिन्दू समाज में घूँघट की प्रथा है; तो मुस्लिम समाज में औरतों को बुरखा पहनना अनिवार्य किया जाता रहा है।
नारियों को आज भी पुरुषों के सामान दर्जा नहीं दिया जाता; और यह स्थति सिर्फ पिछड़े देशों की नहीं है बल्कि कई विकसित देश भी इस प्रथा से अचूक नहीं हैं।
भले ही आज संविधान द्वारा महिलाओं को सामान दर्जा दे दिया गया है; और देशों ने भी इसके प्रति समर्थन किया है मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
संविधान द्वारा अधिकार मिलने के बावजूद भी महिलाएं अनेक अधिकारों से वंचित रहती हैं; और निर्णय निर्माण प्रकिर्या में भी बराबर की भागीदार नहीं हैं और उनके अधिकतर निर्णय पुरुष ही लेते हैं।
हमारे सामने कई प्रकार के उदहारण आते हैं जिनमें से सऊदी अरब का उदाहरण भी एक है; जहाँ महिलाओं को आज भी कार चलने का अधिकार नहीं दिया जाता।
सूडान में कोई भी इस्त्री अपने पति, पिता और भाई की अनुमति के बिना विदेश नहीं जा सकती।
पितृसत्ता की परिभाषा (Definition Of Patriarchy):
सिलविया बाल्बी के अनुसार : “यह एक सामजिक संरचना है जिसमें मनुष्य स्त्री पर अधिकार रखता है तथा उसका दमन तथा शोषण करता है।”
यौन भेदभाव (Gender Bias)
किसी भी समाज व राष्ट्र में संतुलन बनाने के लिए जरूरी है कि वहाँ पुरुषों तथा स्त्रियों के बीच लैंगिक समानता स्थापित की जाए।
आज आधुनिकता की जीवन शैली को अपनाने और आधुनिक शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद दुनिया में कई देश लैंगिक समानता के मामले में पिछड़े हुए हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि लैंगिक असमानता (Gender Bias) का होना ही समाज मे असंतुलन और अपराध को जन्म देता है।
यौन आधारित भेदभाव से अभिप्राय महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव से है जहाँ उनको ना तो सामान अधिकार दिए जाते हैं; और ना ही पुरुषों के सामान अवसर दिए जाते हैं।
यौन आधारित भेदभाव के क्षेत्र:
महिलाओं से सार्वजनिक जीवन के साथ -साथ व्यावसायिक क्षेत्रों में में भी भेदभाव किया जाता है।
महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम वेतन दिया जाना, उनसे काम कि ज्यादा अपेक्षा करना, घरों में नर बालक को ज्यादा प्राथमिकता देना; दहेज़ के लिए किया गया महिलाओं पर अत्याचार, यौन शोषण तथा दुर्व्यवहार कि घटनाओं का बढ़ना; आदि सभी आज भी देखने को मिलते हैं।
यौन आधारित भेदभाव (Gender Bias) के कारण:
यौन आधारित भेदभाव हमारे समाज में काफी लम्बे आरसे से बने हुए हैं; यह भेदभाव कई कारणों से होते हैं जोकि निम्न हैं;
1. पुरुषों पर निर्भरता :
हमेशा से महिलाओं को पुरुषों के अधीन रहना पड़ा है और आज भी उनको पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता है।
परिवार में महिला के कई कार्य होते हैं और उनको अनेक भूमिकाएं निभानी पड़ती हैं; जैसे- बेटी, बेहेन, माँ, सास, दादी आदि और जिस प्रकार उनकी भूमिका बदलती है उसी तरह वह पुरुषों पर निर्भर रहती हैं।
आज भी महिलाएं आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर रहती हैं जिससे उनकी स्थिति और बदतर हुई है।
2. शिक्षा का अभाव :
समाज में शिक्षा का होना बेहद आवश्यक है; शिक्षा का स्तर बढ़ा कर रूढ़िवादी सोच को ख़त्म किया जा सकता है।
समाज में शिक्षा के अभाव के कारण ही महिलाओं को आज तक अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा है।
शिक्षा से व्यक्ति वैज्ञानिक दृष्टि से सोचने लगता है और परिवार के प्रति भी नै सोच को अपनाता है; शिक्षा के होने से व्यक्ति कि सोच भी आधुनिक हो जाती है।
3. बाहरी संसार से संपर्क का अभाव :
महिलाओं का घरों तक सीमित रहना भी उनकी इस स्थिति का एक बड़ा कारण है; महिलाओं को घर से निकलकर बहार कि दुनिया से संपर्क के अवसर नहीं मिलते।
इस प्रकार महिलाओं कि सहभागिता कि कमी से उनके अंदर कौशल निर्माण नहीं हो पाटा।
4. रीति-रिवाज :
पारम्परिक रीति-रिवाजों कि वजह से आज भी महिलाएं खुद को उसी स्थति में रखना पसंद करती हैं; पुरुषों द्वारा महिलाओं के लिए बनाये गए नियम आज भी विध्यमान हैं।
इन नियमों के अनुसार महिलाओं का घर में ही रहना, घूँघट करना, बड़ों के सामने चुप रहना, पुरुषों की सभा में ना बैठना आदि शामिल हैं जो समाज को दीमक कि तरह खाते जा रहे हैं और महिलाओं की इस दशा के जिम्मेदार हैं।
5. पुरुष प्रधान समाज :
आरम्भ से ही हमारा समाज पुरुष प्रधान रहा है जिसके अंतर्गत केवल पुरुष ही घर के निर्णय ले सकता है; पिता की जमीन पर पहला हक़ लड़के का होगा आदि।
इस प्रकार के समाज में, जहाँ स्त्री को कोई अधिकार नहीं दिए जाते और अगर दिए जाते हैं तो नाममात्र; महिलाओं की स्थिति का अंदाजा लगाया जाना मुश्किल नहीं है।
6. राजनीति में महिलाओं का न्यून या सीमित भागीदारी :
आज २१ वीं सदी में भी महिलाओं को राजनीति में भागीदार नहीं बनाया जाता; हालांकि संविधान के मुताबिक़ महिलाओं को राजनीति का हिस्सा बनाया जाना जरुरी है; फिर भी राजनीति में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या काफी कम है।
निष्कर्ष :
महिलाओं को हमेशा से ही असमानताओं का सामना करना पड़ा है और आज भी इस भेदभाव को पूर्णतया ख़त्म नहीं किया जा सका है।
अगर प्राचीन काल से तुलना करें तो आज महिलाओं की भूमिकाओं और स्थिति में बहुत बदलाव आये हैं और महिलाएं भी पुरुष के कंधे से कन्धा मिलकर चलने लगी हैं।
इसी प्रकार महिलाओं और पुरुषों की समान भागीदारी से किसी भी देश को उचाईयों तक ले जाया जा सकता है। अतः किसी भी क्षेत्र में महिलाओं के साथ सौतेला व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
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