
शिक्षण के सिद्धांत (Theories of Teaching): शिक्षा का अर्थ है सीखना और सिखाना। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली प्रक्रिया है जो कि मानव के सम्पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है।
अरस्तु के अनुसार शिक्षा की परिभाषा: “शिक्षा व्यक्ति की शक्तियों का और विशेष रूप से मानसिक शक्तियों का विकास करती है जिससे परम सत्य और चिंतन का आनंद उठा सकते हैं।”
शिक्षा तभी सफल हो सकती है जब शिक्षण सही प्रकार से किया जाए। शिक्षण को एक त्रियामी प्रक्रिया भी कहा जाता है जिसमें निम्न तीन चीजें शामिल होती हैं-
- शिक्षक,
- छात्र,
- पाठ्यक्रम
शिक्षण के माध्यम से शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच अन्तः क्रिया होती है जिसमें शिक्षक पाठ्यक्रम की सहायता से विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करते हैं। शिक्षण एक कला है और शिक्षक एक कलाकार। प्रत्येक कला के कुछ सिद्धांत होते हैं और वही शिक्षक के सिद्धांत बन जाते हैं।
इसी प्रकार शिक्षण के भी सिद्धांत होते हैं। इन सिद्धांतों की सहायता से शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।
शिक्षण के सिद्धांत क्या हैं?
शिक्षण के सिद्धांन्त से अभिप्राय है कि विषय क्षेत्र या प्रक्रिया के विषय में सुव्यवस्थित, सुसंगठित, तथा निश्चित क्रम में विचारों को इस प्रकार से आयोजित किया जाए कि वह प्रक्रिया स्पष्ट रूप से समझ में प्रदर्शित हो जाए।
शिक्षण के सिद्धांत को समझने से पूर्व सिद्धांत शब्द का अर्थ जानना आवश्यक है। भारतीय परंपरा में सिद्धांत का अर्थ “परंपरा या दर्शन” है। सिद्धांत कुछ नियम हैं या एक विशिष्ट प्रणाली या व्यवहार है।
गैने के अनुसार: “सामान्यीकरण और नियमों को भी सिद्धांत कहा जाता है इन सामान्यीकृत नियमों को ही शिक्षण सिद्धांत कहा जाता है। इन शिक्षण सिद्धांतों का पालन करके शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावशाली व सफल बना सकता है।
शिक्षण के सिद्धांत की परिभाषाएं
कार्लिंगर के अनुसार “शिक्षण की विकल्पनाएँ तथा सम्बंधित चरों की व्यवस्था करते हैं। जिसमें शिक्षण प्रत्यय को क्रमबृद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है।”
टैवर्स के अनुसार “शिक्षण सिद्धांत बहुत तर्क वाक्यों का एक समूह होता है जिसे एक ओर शिक्षा के परिणामों तथा दूसरी तरफ छात्रों की विशेषताओं में पारस्परिक संबंधों को स्पष्ट किया जाता है।”
बी ओ स्मिथ के अनुसार: “शिक्षण अधिगम को उत्प्रेरित करने वाली एक पद्धति है।”
रायबर्न के अनुसार: “शिक्षण एक प्रकार के ऐसे सम्बन्ध हैं जो बालक को उसकी अन्तर्निहित क्षमताओं को विकसित करने में सहायता करता है।
शिक्षण प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए कुछ सिद्धांतों की आवश्यकता है जिन्हें हम शिक्षण के सिद्धांत कहते हैं।
शिक्षण के सिद्धांत (Theories of Teaching)
शिक्षण के सिद्धांतों के प्रकार
शिक्षण के सिद्धांत तीन प्रकार के होते हैं जिसमें:
- औपचारिक सिद्धांत (Formal Theory)
- विवरणात्मक सिद्धांत (Discriptive Theory)
- निदेशात्मक सिद्धांत (Normative Theory)
1. औपचारिक सिद्धांत (Formal Theory)
इसको दार्शनिक शिक्षण सिद्धांत भी कहा जाता है। यह सिद्धांत कुछ निश्चित तर्क, तत्व मीमांसा, ज्ञान, मीमांसा, कल्पना व प्रस्ताव पर आधारित है। दार्शनिक दृष्टि से शिक्षण के चार सिद्धांत माने गए हैं। वो इस प्रकार से हैं:
- म्यूटिक सिद्धांत (The Meutic Theory)
- सम्प्रेषण सिद्धांत (The Communication Theory)
- परिवर्तन का सिद्धांत (The Moulding Theory)
- पारस्परिक पूछताछ सिद्धांत (The Mutual Enquiry Theory)
a) म्यूटिक सिद्धांत (The Meutic Theory)
इस सिद्धांत का प्रतिपादन सुकरात ने किया था। शिक्षण के इस सिद्धांत का आधार ज्ञान मीमांशा का सिद्धांत हैं। यह वह ज्ञान है जब आत्मा द्वारा जन्म लिया जाता है तो आत्मा इस ज्ञान को भूल जाती है।
इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा ज्ञान के अभिज्ञान तथा प्रत्यास्मरण में सहायता प्रदान की जाती है। सुकरात द्वारा प्रश्न-उत्तर विधि पर बल दिया गया है। शिक्षक प्रश्नों की मदद से छात्रों में निहित ज्ञान को चेतना मस्तिष्क में ला सकती है। जिसके द्वारा प्रश्न उत्तर विधि के प्रयोग से छात्र के अन्तर्निहित ज्ञान को विकसित कर सकता है।
प्रश्नों की सहायता से छात्र सोचने, तर्क वितर्क करने में निपुण हो जाते हैं। यही कारण है कि प्रशिक्षण संस्थाओं में प्रश्नोत्तर विधि को प्रयोग किया जाता है। और पाठय योजनाओं (Lesson Plans) में भी इस विधि को शामिल किया जाता है।
b) सम्प्रेषण सिद्धांत (The Communication Theory)
इस सिद्धांत में अध्यापक छात्रों को सिखाने के लिए विचारों, तथ्यों, तथा सूचनाओं से प्रस्तुत करता है। शिक्षण कि सफलता प्रभावशाली सम्प्रेषण पर आधारित होती है। कक्षा की अन्तः प्रक्रिया सम्प्रेषण सिद्धांत की व्याख्या करती है।
इस सिद्धांत का मूल बिंदु कक्षा की अन्तः प्रक्रिया है। शिक्षक छात्रों के साथ वार्तालाप करता है जिससे छात्रों के बीच विचारों का आदान प्रदान होता है।
c) परिवर्तन का सिद्धांत (The Moulding Theory)
यह शिक्षण का वह सिद्धांत है जिसके द्वारा आदतों संबंधों और अनुक्रियाओं का विकास होता है तथा आपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन लाया जाता है। इस सिद्धांत में छात्रों और अध्यापकों के संबंधों के आदान प्रदान को अत्यंत महत्व दिया जाता है।
क्योंकि शिक्षण व्यक्तित्व का विकास करता है, व्यक्तित्व के विकास में सामजिक अनुभवों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इससे विद्यार्थियों कि योग्यता में परिवर्तन लाया जा सकता है।
इस सिद्धांत में मानव प्रकृति की धारणा को शामिल किया गया है क्यूंकि शिक्षण व्यक्तित्व का विकास करता है। व्यक्तित्व के विकास में सामाजिक अनुभवों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिससे विद्यार्थियों की योग्यताओं में परिवर्तन लाया जा सकता है। जिसके फलस्वरूप वह स्वयं को वातावरण के अनुकूल समायोजित कर सकते हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार विद्यार्थियों के ज्ञान में परिवर्तन होता है और उनमें अच्छी आदतों, अनुक्रियाओं, व आचरण का विकास होता है तथा अपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है।
d) पारस्परिक पूछताछ सिद्धांत (The Mutual Enquiry Theory)
पारस्परिक पूछताछ सिद्धांत के सिद्धांत के अनुसार शिक्षक एक निर्देशक का कार्य करता हुआ छात्रों को सहायता प्रदान करता है जिससे कि छात्र नवीन ज्ञान को सुगमता से सीख सकते हैं। इसमें सम्प्पूर्ण ज्ञान शिखन कि सहायता से दिया जाता है।
इस शिक्षण में अध्यापक तथा विद्यार्थियों के बीच पारस्परिक पूछताछ होनी जरूरी है जिससे उन्हें नवीन ज्ञान का बोध हो सके।
2. निर्देशात्मक सिद्धांत (Normative Theory)
यह सिद्धांत सामान्य शिक्षण स्थिति में निरिक्षण के आधार पर शिक्षण चरों के बीच सम्बन्ध का वर्णन करता है। शिक्षण का निर्देशात्मक सिद्धांत विकसित किया जाता है क्योंकि प्रयोगात्मक स्थिति में मानव विषय को नियंत्रित करना मुश्किल है।
अधिगम सिद्धांतों का प्रयोग और जानवरों के संचालन द्वारा नियंत्रित परिस्थितियों में विकसित किया गया है।
इस सिद्धांत को चार अन्य सिद्धांतों में बांटा गया है:
- संज्ञानात्मक शिक्षण सिद्धांत
- शिक्षण व्यवहार का सिद्धांत
- मनोवैज्ञानिक शिक्षण का सिद्धांत
- शिक्षण का सामान्य सिद्धांत
संज्ञानात्मक ज्ञान शिक्षण सिद्धांत (Cognitive Theory of Teching)
Gage ने कहा कि शिक्षण का केवल एक सिद्धांत शिक्षक को पूरा नहीं करता है। कोई भी सिद्धांत निश्चित नहीं है और केवल सिद्धांत से शिक्षण के उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सकता है अतः शिक्षण के एक से अधिक सिद्धांत होने चाहियें। क्यूंकि शिक्षण कार्य में कई गतिविधियां शामिल होती हैं जिन्हें उपलब्ध स्थिति में ही पूर्ण किया जा सकता है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एन एल गेज ने ज्ञानात्मक शिक्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत का तात्पर्य विश्लेषण से है। गेज के अनुसार शिक्षण के विश्लेषण को चार भागों में बनता गया है:
- शैक्षिक उद्देश्य
- शिक्षण क्रियाएं
- अधिगम सिद्धांत
- अधिगम के तत्त्व
शिक्षण व्यवहार का सिद्धांत
व्यवहार में क्रियात्मक और अशाब्दिक कार्य होते हैं जो शिक्षक आमतौर पर कक्षा में सीखने को प्रेरित करते हैं।
मनोवैज्ञानिक शिक्षण का सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रमुख कार्य बुद्धि, योग्यता, उपलब्धि, और व्यक्तिगत मतभेदों पर आधारित होता है।
3. विवरणात्मक (वर्णनात्मक) शिक्षण सिद्धांत (Discriptive Theory)
किसी वास्तु, व्यक्ति, घटना का शाब्दिक चित्रण खींच देने की प्रक्रिया को विवरणात्मक सिद्धांत कहते हैं। पहले से ही अध्यापक छात्रों के सामने उस वास्तु विशेष का मानसिक चित्र खींच देता है।
शिक्षण का वर्णनात्मक शिक्षण सिद्धांत विद्यार्थियों के व्यवहार साक्ष्यों तथा अवलोकन पर आधारित है। इस शिक्षण सिद्धांत का उद्देश्य शिक्षण के चरों के बीच सम्बन्ध तथा प्रभावशीलता उत्पन्न करना है।
शिक्षण का यह सिद्धांत व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। वर्णनात्मक सिद्धांत में अनुदेशन सिद्धांत की महत्वपूर्ण भूमिका है। ब्रुनेट तथा गैने इस सिद्धांत के समर्थक थे।
विवरणात्मक सिद्धांत के आधार पर गार्डनर और बर्नर ने शिक्षण के सिद्धांत दिए हैं जो निम्न प्रकार से हैं-
- अनुदेशन शिक्षण का सिद्धांत
- नियम के अनुसार शिक्षण का सिद्धांत
शिक्षण के सिद्धांतों कि आवश्यकता
- शिक्षण के सिद्धांतों द्वारा शिक्षक के ज्ञान, परवकथा में वृद्धि होती है।
- ये शिक्षण तथा सिखाने के बीच सह-सम्बन्ध कि व्याख्या करते हैं।
- इन सिद्धांतों से वर्तमान ज्ञान संगठित होता है
- ये शिक्षण नीतियों के विषय में स्पष्ट निर्देश प्रदान करते हैं।
- ये विभिन्न अनुदेशन प्रारूपों के बारे में ज्ञान प्रदान करते हैं।
- ये शिक्षण के छेत्र में शोध तथा प्रयोग के लिए नए आयाम प्रस्तुत करते हैं।
- इनसे शिक्षण के लिए समुचित परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं।
- ये शिक्षण के चर तथा अचर का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने में मदद करते हैं।
- ये शिक्षकों कि विभिन्न अवधारणाओं के विषय में ज्ञान प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष
शिक्षक और शिक्षार्थियों के बीच अंतःक्रिया होती है और शिक्षक के माध्यम से विद्यार्थी का संज्ञानात्मक, ज्ञानात्मक, सामजिक तथा व्यक्तित्व का विकास होता है। शिक्षक हमेशा विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है और ये सब शिक्षण के सिद्धांतों की सहायता से होता है।
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