
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 (National Education Policy): NEP 1986 भारत की शिक्षा व्यवस्था में एक मील का पत्थर साबित हुई है। यह नीति शिक्षा के क्षेत्र में समानता, गुणवत्ता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लाई गई थी। इस नीति का मुख्य लक्ष्य शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करना, और समाज के सभी वर्गों तक शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित करना था।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ने शिक्षा के क्षेत्र में कई नए आयाम जोड़े, जैसे कि शिक्षा का सार्वभौमीकरण, महिला शिक्षा को प्रोत्साहन, और शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार। इस नीति ने पुरानी शिक्षा नीतियों की कमियों को दूर करने का प्रयास किया और शिक्षा को राष्ट्रीय विकास से जोड़ने पर जोर दिया। आज भी, यह नीति B.Ed और CTET जैसे शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में पढ़ाई जाती है।
इस लेख में हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के मुख्य उद्देश्यों, विशेषताओं और इसके प्रभावों को विस्तार से समझेंगे। साथ ही, यह भी जानेंगे कि यह नीति पुरानी शिक्षा नीतियों से किस प्रकार भिन्न थी और भारतीय शिक्षा व्यवस्था को आकार देने में इसकी क्या भूमिका रही।
भूमिका
भारत ने आजादी के बाद से ही विकास के नए आयामों को अपनाया, जिसमें शिक्षा का सुधार एक प्रमुख लक्ष्य था। देश के सामने यह बड़ी चुनौती थी कि यदि भारत को वैश्विक मंच पर अन्य देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है, तो शिक्षा व्यवस्था में मौलिक सुधार अनिवार्य था। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी ने शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए एक व्यापक पहल की।
5 जनवरी 1985 को, श्री राजीव गांधी ने शिक्षाविदों, समाजशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद एक नई शिक्षा नीति की घोषणा की। इस नीति का उद्देश्य भारत की शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाना और इसे 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए तैयार करना था। इसके बाद, इस योजना को संसद में पेश किया गया और इसे “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986” के रूप में पारित किया गया।
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस नीति को भारत के लिए एक क्रांतिकारी कदम बताया और कहा कि यह नीति न केवल देश को आर्थिक और वैज्ञानिक रूप से सक्षम बनाएगी, बल्कि इसे वैश्विक मंच पर एक नई पहचान भी देगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ने शिक्षा के क्षेत्र में समानता, गुणवत्ता और रोजगारोन्मुखी दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर भारतीय शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा प्रदान की।
नई शिक्षा नीति का सार
शिक्षा सबके लिए अनिवार्य:
नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना और इसे सभी के लिए अनिवार्य करना है। इसके तहत हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि से हो, शिक्षा तक पहुँच सके।
आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास की नींव:
शिक्षा को व्यक्ति के समग्र विकास का आधार माना गया है। यह न केवल भौतिक ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को भी विकसित करती है। इसलिए, नीति में शिक्षा को एक संतुलित और व्यापक दृष्टिकोण से देखा गया है।
मानव शक्ति का विकास:
मानव को सबसे बड़ा संसाधन मानते हुए, नीति में उसके कौशल और क्षमताओं को निखारने पर जोर दिया गया है। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति की प्रतिभा को पहचानना और उसे विकसित करना इसका मुख्य लक्ष्य है।
सर्वोत्तम धन निवेश:
शिक्षा पर किया गया निवेश कभी व्यर्थ नहीं जाता। इसे सबसे अच्छा निवेश माना गया है, क्योंकि यह न केवल व्यक्ति बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
अनुसंधान एवं विकास का आधार:
शिक्षा की कमी के कारण समाज में अंधविश्वास और पिछड़ापन बना रहता है। शिक्षा के प्रसार से ही वैज्ञानिक सोच और अनुसंधान को बढ़ावा मिलता है, जो राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक है।
सांस्कृतिक विकास में योगदान:
भारत की समृद्ध और विविध संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण उपकरण है। शिक्षा के माध्यम से लोगों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ा जा सकता है और उसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
अज्ञानता को दूर करना:
शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य व्यक्ति की अज्ञानता को दूर करना और उसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना है। यह न केवल व्यक्ति को सशक्त बनाती है, बल्कि समाज को भी प्रगति की ओर ले जाती है।
शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली :
नई शिक्षा नीति पूर्ण रूप से संविधान पर आधारित है और उसकी नीतियां निम्न प्रकार से हैं :
सामान्य शिक्षात्मक ढांचा :
नई राष्ट्रीय नीति के अंतर्गत पूरे देश में एक समान शिक्षा नीति को लागू करने की शिफारिश की गयी थी।
इस सामान्य ढांचे के अंतर्गत शिक्षा को पूरे देश में एक ही तरह से लागू किया गया। सभी जगह यह ढांचा 10+2+3 के रूप में दिखता है जिसमें-
10 का अर्थ है – कक्षा दसवीं तक की पढाई जिसको इस प्रकार विभाजित किया गया है – 5 वर्षा प्राइमरी शिक्षा + 3 वर्षा उच्च प्राइमरी शिक्षा + 2 वर्ष की उच्च विद्यालय शिक्षा।
+ 2 से तात्पर्य है – २ वर्ष की सीनियर सेकण्डरी शिक्षा।
+3 वर्ष से तात्पर्य है – महाविद्यालय कोर्स की ३ वर्ष की अवधि जिसमें स्तानक की डिग्री के लिए शिक्षा शामिल है।
राष्ट्र का एक पाठ्यक्रम:
सभी समान कक्षा के विद्यार्थिओं को समान प्रकार की शिक्षा का प्रावधान किया गया जिसके अंतर्गत यदि कोई बालक कक्षा ७ में हरयाणा में पढता है और वो दिल्ली में ट्रांसफर करवाना चाहता है तो उसको शिक्षा में बदलाव जैसी किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा अर्थात पाठ्यक्रम दोनों जगह समान ही होगा।
राष्ट्रीय प्रणाली की धारा:
इसके अंतर्गत देश के सभी स्कूलों और विश्वविद्यालों पर समान रूप से नियम लागू होते हैं।
आजीवन शिक्षा:
इस नई शिक्षा नीति में शिक्षा को आसान और सार्वभौमिक बनाने के लिए आजीवन शिक्षा का प्रावधान रखा गया जिसके अंतर्गत किसी भी उम्र में शिक्षा प्राप्त की जा सकती है और इसमें दूरगामी शिक्षा तथा मुक्त विश्वविद्यालय आदि की व्यवस्था की गयी।
सीखने का न्यूनतम स्तर:
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत न्यूनतम स्तर का विशेष ध्यान रखा गया ताकि विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले छात्र भी इसका लाभ उठा सकें।
इसके अंतर्गत बिना किसी जाति, पंथ, स्थान और लिंग के भेदभाव के शिक्षा को सभी तक पहुंचने की व्यवस्था की गयी।
अन्य भाषाओं से सम्बन्ध:
इसके अंतर्गर राष्ट्रीय और राज्य भाषाओं का तालमेल विदेशी भाषाओं से मिलाने के लिए सभी भाषाओँ को शामिल किया गया। भाषाओँ के इस तालमेल के लिए बहुभाषी शब्दकोशों आदि का प्रकाशन किया गया।
परीक्षा एवं मूल्यांकन:
पहले जहाँ परीक्षा का कोई प्रावधान नहीं था अब नई शिक्षा नीति के अंतर्गत विद्यार्थिओं की परीक्षा तथा मूल्यांकन की व्यवस्था की गयी।
इन परीक्षाओं से शिक्षा का स्तर बहुत बढ़ा है तथा मूल्यांकन में भी आसानी हुई है।
विज्ञान तथा गणित की शिक्षा ओर बल:
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत विज्ञान और गणित की शिक्षा पर अधिक बल दिया गया।
इसके अंतर्गत दसवीं कक्षा तक विज्ञान एवं गणित को अनिवार्य बना दिया गया। इसका उद्देश्य शिक्षा के स्तर को अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा लायक बनाना था।
राष्ट्रीय महत्व की संस्थाओं का निर्माण:
शिक्षा की नई नीति को लागू करने के लिए सुरु की गयीं कुछ सस्थाएं निम्न हैं –
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grant Commission)
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (All India Council Of Agricultural Research)
- भारतीय चिकित्सा परिषद् (Indian Medical Council)
- अखिल भारतीय तकनिकी शिक्षा परिषद् (All India Council Of Technical Education)
इन सभी संस्थाओं में एक साथ या संयुक्त रूप से योजनाएं प्रारम्भ की गयीं ताकि ये एक दूसरे से तालमेल स्थापित कर सकें।
इनमें स्नातकोत्तर एवं अनुसंधान सम्बन्धी कार्यक्रम सुरु किये जाने के लिए इन सभी संस्थाओं का तालमेल आवश्यक था।
समानता के लिए शिक्षा में किये गए प्रावधान :
नई शिक्षा नीति में काफी अच्छी व्यवस्थाएं की गयीं जिनमें से सभी को शिक्षा में समानताएं देने की व्यवस्था बेहद अच्छी थी।
इसके अंतर्गत सभी भारतीयों को चाहे वो किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, जाति, भाषा या क्षेत्र से सम्बन्ध रखता हो; को शिक्षा ग्रहण करने के सामान अवसर प्रदान किये जायेंगे।
इसके अंतर्गत निम्न व्यवस्थाएं शामिल हैं-
नारी के लिए शिक्षा (Education For Women):
जैसा की हम जानते हैं की नारी को हमेशा से सभी अधिकार प्राप्त नहीं थे; तथा समय के साथ उनको उनके अधिकार दिए गए।
पहले, समाज में नारी की शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता था; मगर नई शिक्षा नीति के अंतर्गत अब महिलाएं भी सामान रूप से शिक्षा ले सकती हैं।
इस शिक्षा नीति को लागू करना और महिलाओं को विद्यालय तक ला पाना आसान नहीं था; महिलाओं की शिक्षा के लिए अनेक आयोग बनाये गए जिनसे द्वारा जागरूकता भी फैलाई गई।
और महिलाओं को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित किया गया।
अनुसूचित जातियों के लिए शिक्षा :
अनुसूचित जातियों या पिछड़े वर्गों को हमारे समाज में समान दर्जा प्राप्त नहीं था; और उनमें शिक्षा का स्तर भी काफी कम था।
इन सभी को शिक्षा से जोड़ने के लिए नई व्यवस्थाएं की गयीं; जिनके अंतर्गत क्षात्रवृत्ति, दूरदराज क्षेत्रों से आने वाले विद्यार्थिओं के लिए हॉस्टलों की व्यवस्था करना, आदि शामिल हैं।
अनुसूचित जनजातिओं के लिए शिक्षा:
अनुसूचित जनजातिओं में भी शिक्षा का स्तर बढ़ाना आवश्यक था। तथा उनके लिए भी कुछ प्रावधान किये गए जैसे कि –
जनजातिक क्षेत्रों में विद्यालयों का खुलना, उनमें से ही किन्ही व्यक्तिओं को अध्यापन कराने की लिए चुनना,
शिक्षा के लिए आवश्यक सामग्री का इंतज़ाम करना, छात्रवृति देना, अनुसूचित जनजाति की बच्चों को अन्य बच्चों के साथ जोड़ना आदि।
विकलांगों के लिए शिक्षा:
विकलांगों को शिक्षा में शामिल करने के लिए और उनका आत्मबल बढ़ाने के लिए नई शिक्षा नीति में प्रावधान किये गए जो की निम्न हैं –
विशेष विद्यालयों की व्यवस्था, निशुल्का क्षात्रवास की सुविधा, विकलांग विद्यार्थों की शिक्षा की व्यवस्था दूसरे विद्यार्थों के साथ की गई, इन बच्चों की शिक्षा के लिए अध्यापकों को विशेष ट्रेनिंग कैंप लगाए गए इत्यादि।
अल्पसंख्यकों के लिए भी नई शिक्षा नीति में प्रावधान किये गए जो की निम्न हैं –
अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा:
अल्पसंख्यक जातियां भी शिक्षा से वंचित रहीं हैं; तथा उनका शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए नई शिक्षा नीति में कुछ प्रावधान किये गए जो निम्न हैं –
इन विद्यार्थों के लिए ऐसे विद्यालयों का प्रावधान किया गया जहाँ; उनकी भाषा और संस्कृति को सुरक्षित रखा जा सके, सामान्य कोर पाठ्यक्रम को अनिवार्य अंग बनाया गया इत्यादि।
अन्य पिछड़े वर्ग और क्षेत्रों की शिक्षा:
नई शिक्षा नीति में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए भी कुछ प्रावधान किये गए, जिनसे उनका भी विकास हो सके; दूरदराज के क्षेत्रों में विद्यालय बनवाये गए,
उनके लिए प्रेरणादायक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, सभी पिछड़े व्यक्तिओं को वजीफा दिए जाने का भी प्रावधान किया गया।
प्रौढ़ों के लिए शिक्षा:
जहाँ शिक्षा की नई नीति में विद्यालय स्तर की सभी व्यवस्थाएं की गई थीं; वहीँ प्रोढ़ों के लिए भी अनेक व्यवस्थाएं शामिल हैं जो इस प्रकार हैं-
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के केंद्र स्थापित करना, दूरस्थ शिक्षा के कार्यक्रम बनाना, रेडियो, दुर्दशा तथा वाचनालयों के माध्यमों से शिक्षा का प्रबंध करना,
कर्मचारिओं या मजदूरों के बच्चों की शिक्षा का प्रबंध उनके मालिक द्वारा करवाना, स्नातक शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था करना आदि।
निष्कर्ष:
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य केवल शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना ही नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के समग्र विकास, समाज की प्रगति और राष्ट्र के उत्थान को सुनिश्चित करने का एक मजबूत माध्यम है। यह नीति शिक्षा को सर्वसुलभ बनाकर, आध्यात्मिक और भौतिक विकास के बीच संतुलन स्थापित करती है। साथ ही, यह मानव कौशल को निखारने, वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास करती है।
शिक्षा पर किया गया निवेश न केवल व्यक्ति बल्कि पूरे समाज और देश के लिए फलदायी साबित होता है। नई शिक्षा नीति के माध्यम से भारत एक ऐसे भविष्य की ओर अग्रसर हो रहा है, जहाँ हर व्यक्ति शिक्षित, सशक्त और समृद्ध होगा। यह नीति न केवल वर्तमान बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मजबूत आधार तैयार कर रही है।
इस प्रकार, नई शिक्षा नीति भारत को एक ज्ञान आधारित समाज बनाने और वैश्विक मंच पर अग्रणी भूमिका निभाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
Buy Project Files and Lesson Plans at lowest rates ever.
Follow these simple steps:
- Pay us through Instamojo.
- Send the payment screenshot on WhatsApp.
- Get your order within a few moments.
- You can also get a 10% extra discount on becoming a contributor to our website.
Pay us through Instamojo here!
Have some doubts? WhatsApp us here.
To download other lesson plans PDF, join us on Telegram.
We hope that this article has been beneficial for you. If you have any quarry or questions regarding the content on our website, feel free to contact us here.
Follow us on our social media handles to get regular updates-
Useful books,
B.Ed Files,
- ICT File [Computerized]
- Drama and Art in Education File [ENGLISH]
- Reading and Reflecting on Texts File [ENGLISH]
- Reading and Reflecting on Texts file [HINDI]
- Understanding the Self file [English]
- Understanding the Self file [HINDI]
Lesson Plans,
- English Lesson Plans
- Biology Lesson Plans
- Chemistry Lesson Plans
- Commerce Lesson Plans
- Social Science Lesson Plans
- Mathematics Lesson Plans
- Physical Science Lesson Plans
- English Lesson Plans
- Hindi Lesson Plans
- Economics Lesson Plans
Trending articles,
- JAMIA FREE UPSC Coaching
- Piaget’s Theory of Cognitive Development.
- Explain the term Parenting. Discuss in detail the various parenting styles that influence the development aspects of children and adolescents.
- Define assessment. How is it useful in the school education system?
- Discipline, Its Types, and Importance.
- Revised Bloom’s Taxonomy NotesWhat are the approaches of counseling?
- कोहलबर्ग के नैतिक विकास का सिद्धांत।
- विकास में अनुवांशिकता और वातावरण की सापेक्ष भूमिका को समझाइये।
- मीडिया क्या है? समझाइये और बढ़ते बच्चों और किशोरों पर मीडिया के दुष्प्रभावों की विस्तार से व्याख्या कीजिये।
- मूल्यांकन, आकलन तथा मापन में अंतर।
- निष्पक्षता तथा समानता में क्या अंतर है?
- परीक्षा क्या है?
- आकलन क्या है?
- ज्ञान प्राप्ति के स्रोत कौन-कौन से हैं?
- सूचना तथा ज्ञान में अंतर बताइये।
- एरिक्सन के मनो-सामाजिक विकास के सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।
- परवरिश से आप क्या समझते हैं? विभिन्न परवरिश की शैलिओं के वारे में विस्तार से चर्चा करें जो बचपन और किशोर के विकास के पहलुओं को प्रभावित करतीं हैं।
- संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत।
- यौन तथा पितृसत्ता, यौन भेदभाव तथा यौन रुधियुक्तियों का वर्णन कीजिये।
नई शिक्षा नीति, शिक्षा सुधार, शिक्षा का सार्वभौमीकरण, आध्यात्मिक और भौतिक विकास, मानव शक्ति का विकास, शिक्षा में निवेश, अनुसंधान और विकास, सांस्कृतिक विकास, वैज्ञानिक सोच, शिक्षा नीति के लाभ, भारतीय शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा और समाज, शिक्षा और रोजगार, शिक्षा और तकनीक, शिक्षा और संस्कृति, शिक्षा का महत्व, 21वीं सदी की शिक्षा, शिक्षा नीति के उद्देश्य, शिक्षा नीति के प्रभाव, NEP 1986